श्री दरबार साहिब में अटल श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का हुकमनामा साहिब और सरल व्याख्या
अंग 690 दिनांक 12 अप्रैल 2021 (30 चेत समत 553 नानकशाही)
धनासरी महला ५
यह बानी राग धनसारी में उचारण की गई, धन गुरु अर्जुन देव जी की बानी है।
यह बानी राग धनसारी में उचारण की गई, धन गुरु अर्जुन देव जी की बानी है।
ੴ सतगुरु प्रसाद
अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा से मिलता है।
हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥
हे भाई! अगर परमात्मा खुद कृपा करे, तो उसका नाम स्मरण किया जा सकता है।
सतिगुरु मिलै सुभाइ सहजि गुण गाईऐ जीउ ॥
अगर गुरु मिल जाए, तो (प्रभु के) प्रेम में (लीन हो के) आत्मिक अडोलता में (टिक के) परमात्मा के गुण गा सकते हैं।
गुण गाइ विगसै सदा अनदिनु जा आपि साचे भावए ॥
(परमात्मा के) गुण गा के (मनुष्य) सदा हर वक्त खिला रहता है, (पर ये तब ही हो सकता है) जब सदा कायम रहने वाले परमात्मा को स्वयं (ये मेहर करनी) पसंद आए।
अहंकारु हउमै तजै माइआ सहजि नामि समावए ॥
(गुणगान की इनायत से मनुष्य) अहंकार, अहम्, माया (का मोह) त्याग देता है, और आत्मिक अडोलता में हरि-नाम में लीन हो जाता है।
आपि करता करे सोई आपि देइ त पाईऐ ॥
(नाम-जपने की दाति) वह परमात्मा खुद ही देता है, जब वह (ये दाति) देता है तब ही मिलती है।
हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥१॥
हे भाई! परमात्मा कृपा करे, तो उसका नाम स्मरण किया जा सकता है।1।
अंदरि साचा नेहु पूरे सतिगुरै जीउ ॥
हे भाई! पूरे गुरु के द्वारा (मेरे) मन में (परमात्मा से) सदा-स्थिर रहने वाला प्यार बन गया है।
हउ तिसु सेवी दिनु राति मै कदे न वीसरै जीउ ॥
(गुरु की कृपा से) मैं उस (प्रभु) को दिन-रात स्मरण करता रहता हूँ, मुझे वह कभी नहीं भूलता।
कदे न विसारी अनदिनु सम्हारी जा नामु लई ता जीवा ॥
मैं उसे कभी भी भुलाता नहीं, मैं हर वक्त (उस प्रभु को) हृदय में बसाए रखता हूँ। जब मैं उसका नाम जपता हूँ, तब मुझे आत्मिक जीवन प्राप्त होता है।
स्रवणी सुणी त इहु मनु त्रिपतै गुरमुखि अम्रितु पीवा ॥
जब मैं अपने कानों से (हरि नाम) सुनता हूँ तब (मेरा) ये मन (माया की ओर से) अघा जाता है।
नदरि करे ता सतिगुरु मेले अनदिनु बिबेक बुधि बिचरै ॥
हे भाई! मैं गुरु की शरण पड़ कर आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल पीता रहता हूँ (जब प्रभु मनुष्य पर मेहर की) निगाह करता है, तब (उसको) गुरु मिलाता है (तब हर समय उस मनुष्य के अंदर) अच्छे-बुरे की परख कर सकने वाली अक्ल काम करती है।
अंदरि साचा नेहु पूरे सतिगुरै ॥२॥
हे भाई! पूरे गुरु की कृपा से मेरे अंदर (प्रभु से) सदा कायम रहने वाला प्यार बन गया है।2।
सतसंगति मिलै वडभागि ता हरि रसु आवए जीउ ॥
(जिस मनुष्य को) बड़ी किस्मत से साधु-संगत प्राप्त हो जाती है, तो उसको परमात्मा के नाम का स्वाद आने लग जाता है,
अनदिनु रहै लिव लाइ त सहजि समावए जीउ ॥
वह हर वक्त (प्रभु की याद में) तवज्जो जोड़े रखता है, आत्मिक अडोलता में टिका रहता है।
सहजि समावै ता हरि मनि भावै सदा अतीतु बैरागी ॥
जब मनुष्य आत्मिक अडोलता में लीन हो जाता है, तब परमात्मा को प्यारा लगने लग जाता है, तब माया के मोह से परे लांघ जाता है, निर्लिप हो जाता है।
हलति पलति सोभा जग अंतरि राम नामि लिव लागी ॥
इस लोक में, परलोक में, सारे संसार में उसकी शोभा होने लग जाती है, परमात्मा के नाम में उसकी लगन लगी रहती है।
हरख सोग दुहा ते मुकता जो प्रभु करे सु भावए ॥
वह मनुष्य खुशी-ग़मी दोनों से स्वतंत्र हो जाता है, जो कुछ परमात्मा करता है वह उसको अच्छा लगने लगता है।
सतसंगति मिलै वडभागि ता हरि रसु आवए जीउ ॥३॥
हे भाई! जब बड़ी किस्मत से किसी मनुष्य को साधु-संगत प्राप्त होती है तब उसको परमात्मा के नाम का रस आने लग पड़ता है।3।
दूजै भाइ दुखु होइ मनमुख जमि जोहिआ जीउ ॥
हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य को आत्मिक मौत ने सदा अपनी निगाह तले रखा हुआ है, माया के मोह के कारण उसे सदा दुख व्यापता है।
हाइ हाइ करे दिनु राति माइआ दुखि मोहिआ जीउ ॥
ह दिन रात ‘हाय हाय’ करता रहता है, माया के दुख में फंसा रहता है।
माइआ दुखि मोहिआ हउमै रोहिआ मेरी मेरी करत विहावए ॥
वह सदा माया के दुख में ग्रसा हुआ अहंम् के कारण क्रोधातुर भी रहता है। उसकी सारी उम्र ‘मेरी माया मेरी माया’ करते हुए बीत जाती है।
जो प्रभु देइ तिसु चेतै नाही अंति गइआ पछुतावए ॥
जो परमात्मा (उसे सब कुछ) दे रहा है उस परमात्मा को वह कभी याद नहीं करता, आखिर में जब यहाँ से चलता है तो पछताता है।
बिनु नावै को साथि न चालै पुत्र कलत्र माइआ धोहिआ ॥
पुत्र, स्त्री (आदि) हरि-नाम के बिना कोई (मनुष्य के) साथ नहीं जाता, दुनिया की माया उसे छल लेती है।
दूजै भाइ दुखु होइ मनमुखि जमि जोहिआ जीउ ॥४॥
हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य को आत्मिक मौत ग्रसे रखती है, माया के कारण उस को सदा दुख व्यापता है।4
करि किरपा लेहु मिलाइ महलु हरि पाइआ जीउ ॥
हे हरि! जिस मनुष्य को तू (अपनी) कृपा करके (अपने चरणों में) जोड़ लेता है, उसको तेरी हजूरी प्राप्त हो जाती है।
सदा रहै कर जोड़ि प्रभु मनि भाइआ जीउ ॥
(हे भाई! वह मनुष्य प्रभु की हजूरी में) सदा हाथ जोड़ के टिका रहता है, उसको (अपने) मन में प्रभु प्यारा लगता है।
प्रभु मनि भावै ता हुकमि समावै हुकमु मंनि सुखु पाइआ ॥
जब मनुष्य को अपने मन में प्रभु प्यारा लगने लगता है, तब वह प्रभु की रजा में टिक जाता है, और हुक्म मान के आत्मिक आनंद लेता है।
अनदिनु जपत रहै दिनु राती सहजे नामु धिआइआ ॥
वह मनुष्य हर वक्त दिन रात परमात्मा का नाम जपता रहता है, आत्मिक अडोलता में टिक के वह हरि-नाम स्मरण करता रहता है।
नामो नामु मिली वडिआई नानक नामु मनि भावए ॥
हे नानक! परमात्मा का (हर वक्त) नाम-स्मरण करने से (ही) उसको बड़ाई मिली रहती है, प्रभु का नाम (उसको अपने) मन में प्यारा लगता है।
करि किरपा लेहु मिलाइ महलु हरि पावए जीउ ॥५॥१॥
हे हरि! (अपनी) कृपा करके (जिस मनुष्य को तू अपने चरणों में) जोड़ लेता है, उसको तेरी हजूरी प्राप्त हो जाती है।5।1।
वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी की फतिह
(यह सेवा अकाल पुरख वाहिगुरु जी दास रणधीर सिंह अंबाला से स्वयं ले रहे हैं)
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